Surya Grahan 21 June 2020

शुभम प्रभात मित्रों नमामि

सूर्यग्रहण
दिनांक21 जून रविवार को खंडग्रास सूर्यग्रहण होगा जो कि भारत में दिखेगाअतः इस ग्रहण का नियम पालन आवश्यक होगा।
ग्रहण का स्पर्श(लगना): सुबह 10.09*
ग्रहण का मोक्ष(छूटना): दोपहर 01.43
ग्रहण का सूतक(छाया):दिनांक 20 जून शनिवार को रात 10.09 से दूसरे दिन दोपहर 01.43 तक।
सूर्य ग्रहण के दौरान क्या करें क्या ना करें
सीता के बाल (दभ॓)(डाब)हो तो कोई भी चीज का उपयोग कर सकते हैं
सूर्य ग्रहण के दौरान कुछ कार्यों को विशेष रुप से करने की मनाही होती है तो कुछ कार्यों के लिए सर्वोत्तम समय होता है। यदि आप कोई सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं तो उसके लिए मंत्र जाप करने हेतु ग्रहण काल सर्वोत्तम माना गया है।*
स्पर्शे स्नानं जपं कुर्यान्मध्ये होमं सुरार्चनम।
मुच्यमाने सदा दानं विमुक्तौ स्नानमाचरेत।।
--- (ज्ये. नि.)
अर्थात ग्रहण काल के प्रारंभ में स्नान और जप करना चाहिए तथा ग्रहण के मध्य काल में होम अर्थात यज्ञ और देव पूजा करना उत्तम रहता है। ग्रहण के मोक्ष होने के समय दान करना चाहिए तथा पूर्ण रूप से ग्रहण का मोक्ष होने पर स्नान करके स्वयं को पवित्र करना चाहिए।*
दानानि यानि लोकेषु विख्यातानि मनीशिभः।
तेषां फलमाप्नोति ग्रहणे चन्द्र सूर्ययोः।।
--- (सौर पुराण)
अर्थात इस समस्त संसार में जितने भी दान दिए जाते हैं, कोई भी प्राणी उन सभी दानों का फल चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण काल में दान करने से प्राप्त कर लेता है। वास्तव में दान करने की बहुत महिमा बताई गयी है।
अन्नं पक्वमिह त्याज्यं स्नानं सवसनं ग्रहे।
वारितक्रारनालादि तिलैदम्भौर्न दुष्यते।।
---(मन्वर्थ मुक्तावली)
सूर्य ग्रहण के दौरान भगवान सूर्य की पूजा विभिन्न सूर्य स्रोतों के द्वारा करनी चाहिए तथा आदित्य हृदय स्त्रोत्र आदि का पाठ करना काफी अच्छा परिणाम देता है। पका हुआ अन्न और कटी हुई सब्जियों का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि वे दूषित हो जाती हैं। हालांकि घी,तेल, दही, दूध, दही, मक्खन, पनीर, अचार, चटनी, मुरब्बा जैसी चीजों में पीलिया कुशा रख देने से ग्रहण काल में दूषित नहीं होते हैं। यदि कोई सूखा खाद्य पदार्थ है तो उसमें कुशा रखने की आवश्यकता नहीं होती।
चन्द्रग्रहे तथा रात्रौ स्नानं दानं प्रशस्यते।
चाहे चंद्र ग्रहण हो अथवा सूर्य ग्रहण रात्रि के समय दौरान स्नान दान करना प्रशस्त माना गया है।*
न स्नायादुष्णतोयेन नास्पर्शं स्पर्शयेत्तथा।।
ग्रहण काल के दौरान तथा ग्रहण की मौत के बाद गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहिए। हालांकि बालकों, वृद्धों, गर्भवती स्त्री और रोगियों के लिए निषेध नहीं है।
यन्नक्षत्रगतो राहुर्ग्रस्ते शशिभास्करौ।
तज्जातानां भवेत्पीड़ा ये नराः शांतिवर्जिताः।।
किसी नक्षत्र में राहु चंद्र अथवा सूर्य को ग्रसित करता है ऐसे लोगों को विशेष रूप से पीड़ा होने की संभावना होती है।
ग्रस्यमाने भवेत्स्नानं ग्रस्ते होमो विधीयते।
मुच्यमाने भवेद्दानं मुक्ते स्नानं विधीयते।।
सर्वगङ्गा समं तोयं सर्वेव्यास समद्विजाः।
सर्वभूमि समं दानं ग्रहणे चन्द्र -सूर्ययोः।।
ग्रहण काल के दौरान शुद्ध जल किसी भी स्थान से लिया जाए वो श्री गंगा जल के समान निर्मल होता है। स्नान और दान करना सभी प्रकार से उचित होता है। सभी प्रकार के द्विज व्यास जी के समान माने जाते हैं।* चंद्रग्रहण अथवा सूर्य ग्रहण के अंत में दिया जाने वाला दान भी सर्व भूमि दान के बराबर माना जाता है।
ओम सूर्याय नमः 108 बार जाप करें
ओम एम हीम क्लीम चामुंडायै विच्चे नमः 108 बार जाप करें
ओम नमः शिवाय 108 बार जाप करें
श्री कृष्णा शरणम नमः 108 जाप करें

सूर्य ग्रहण रविवार को हो रहा है
क्या दान किया जाए
सूर्य ग्रहण में राहु का दान किया जाता है राहु ग्रह आपके ऊपर प्रसन्न हो और आपका अनिष्ट ना हो जिन राशियों के राहु खराब चल रहा हो
जैसे मिथुन राशि वाले के लिए राहु जन्म स्थान का खराब करता है वैसे ही कर्क राशि वाले के लिए राहु बारहवें भाव में बैठा हुआ है
मीन राशि वाले के लिए चतुर्थ भाव में राहु बैठा हुआ है
वृश्चिक राशि वाले के लिए राहु अष्टम भाव में बैठा हुआ है
ऐसे जिन जिन जिन राशि वाले के लिए ग्रहण खराब है उन राशि वालों को चाहिए कि वह सप्तधान्य इन सात प्रकार का धान्य कपड़े पहनने के कपड़े साल कंबल
आदि ग्रहण के समय दान दिया जाए जिससे राहु केतु प्रसन्न हो और सामने वाले जिन राशि वाले के लिए खराब है उनके लिए अनिष्ट ना हो
यह जरूरी नहीं कि जिन की राशि पर ग्रहण खराब है वही लोग दान करें ग्रहण में सभी व्यक्ति दान कर सकते हैं और ग्रहण के समय मरण के समय और जन्म के समय जो दान दिया जाता है वह अक्षय फल प्राप्त करता है

श्री श्याम सुन्दर श्री यमुना महारानी की जय हो
श्री यमुना जी की
__________शोभा बरनी न जाय।
शीतल सौरभ नवल नीर
____ मृदु पिया प्यारी तन भाय ।१।
विकसे कमल पुहुप फूले
________अलि गुंजैं बितान छबाय।
रसद पराग सुगंध पवन
_____मिलि श्रीवृंदावन महकाय ।२।
सारस हँस मोर शुक कोकिल
_________ _गीत जुगल जस गाय ।
मृदुल पुलिन द्रुमि तरू भरि
____रुचिकर घाटन पाँति लुभाय ।३।
श्री राधा बिहारी डुबकी ले
_______लपटें जल क्रीड़त न अघाय ।
कृष्ण चंद्र राधा चरण दासि
___बैठी(तट ) भूषन वसन सजाय ।४।
जहा पर पुष्टिमार्गीय वैष्णव द्वारा यमुना जी के गुणों का गान होता हे वहा पर ठाकुर जी आकर के बिराजमान हो जाते हे ।
जिनके गु न सुनन को लाल गिरधरण प्रिय आय सन्मुख ताहि बिराजे ।
यमुना महारानी परम दयालु परम कृपालु पुष्टिमार्ग की अधिष्ठात्री हे इनके कृपा के बिना पुष्टि मार्ग में प्रवेश सम्भव नहीं हे । ठाकुर जी की चतुर्थ प्रिया पटरानी हे ।
महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने अपने सोढस ग्रन्थ में सर्वप्रथम यमुनास्टक स्त्रोत की रचना करी ।
यमुनास्टक स्त्रोत में यमुना जी के स्वरूप का दयालुता का अस्ट सिद्धि दाता का वर्णन मिलता हे ।
आप सकल सिद्धियो को प्रदान करने वाली हे
आपके तट पर ठाकुर जी के चरणारबिंद की रज बिखरी हुयी हे ।
सूर्य मंडल में स्थित प्रभु के हृद्वय से रसरूप प्रकट होकर कालिंदी गिरी पर्वत से पृथ्वी पर जल रूप में पधारी हे ।
बहत धारा तन प्रति छिन नोतन राखत अपने उर माझ ठानी
श्याम सूंदर को अपने हृद्वय में धारण कर रखा हे । नीचे पधारते समय आप इतनी सूंदर शोभायमान हो रही हे जेसे आप उत्तम डोली में बिराजकर अति आतुरता से पधार रही हे ।
भक्तो को भगवत भाव से युक्त करके जो भी अन्य भाव हो उससे रहित करती हे मनोवांछित फल प्रदान करती हे
आपका जल पान करने से यम यातना नहीं होती । भगवान् का प्रिय बन जाता हे ।
तरंगे ही। आप की भुजाये हे उनके बीच में दिखने वाले बालू के कण सुशोभित हो रहे हे ।और ऐसा लग रहा हे जेसे आपने कंकण धारण कर रखे हे उन कंगन में अमूल्य नग मानक पन्ना हीरा चमक रहे हे।......

चार प्रमुख धामों में से एक जगन्नाथपुरी धाम ।।
माना जाता है कि भगवान विष्णु जब चारों धामों पर बसे अपने धामों की यात्रा पर जाते हैं तो हिमालय की ऊंची चोटियों पर बने अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्‍वरम में विश्राम करते हैं। द्वापर के बाद भगवान कृष्ण पुरी में निवास करने लगे और बन गए जग के नाथ अर्थात जगन्नाथ। पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं।
हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। भारत के पूर्व में बंगाल की खाड़ी के पूर्वी छोर पर बसी पवित्र नगरी पुरी उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से थोड़ी दूरी पर है। आज का उड़ीसा प्राचीनकाल में उत्कल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यहां देश की समृद्ध बंदरगाहें थीं, जहां जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया, थाईलैंड और अन्य कई देशों का इन्हीं बंदरगाह के रास्ते व्यापार होता था।
पुराणों में इसे धरती का वैकुंठ कहा गया है। यह भगवान विष्णु के चार धामों में से एक है। इसे श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल, नीलगिरि और श्री जगन्नाथ पुरी भी कहते हैं। यहां लक्ष्मीपति विष्णु ने तरह-तरह की लीलाएं
की थीं। ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार यहां भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए।
सबर जनजाति के देवता होने के कारण यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है। पहले कबीले के लोग अपने देवताओं की मूर्तियों को काष्ठ से बनाते थे। जगन्नाथ मंदिर में सबर जनजाति सभी कर सकते

Guru Bhau Maharaja

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